मुगलकालीन वास्तुकला

मुगल ’’वास्तुकला’’

मुगल वास्तुकला की शुरुआत बाबर के समय से ही मानी जाती है परन्तु उसके काल में कोई विशेष इमारत नहीं बनवाई गयी केवल कुछ मस्जिदें ही बनवाई गयी।

  1. पील खाना: अलीगढ़ के पास स्थित मस्जिद।
  2. काबुली नाग: पानीपत में स्थित मस्जिद।
  3. सम्भल: रुहेलखण्ड में स्थित मस्जिद।
  4. बाबरी मस्जिद: अयोध्या में मीर बकी द्वारा निर्मित मस्जिद।
हुमायूँ कालीन वास्तु कला
  1. दीन-पनाह: दिल्ली में बनवाया गया नगर।
  2. फतेहाबाद की मस्जिद:
  3. आगरा की मस्जिद

शेरशाह कालीन स्थापत्य कला

  1. पुराना किला।
  2. किला-ए-कुहना मस्जिद।
  3. शेरशाह का मकबरा:-बिहार के सहसाराम में एक झील में स्थित। यह हिन्दू एवं मुस्लिम एकता का प्रतीक है।

अकबर कालीन

अकबर मुगल वास्तुकला का वास्तविक जन्मदाता था। इसके निर्माण में अधिकतर लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग हुआ है। इसके काल के प्रमुख निर्माण निम्नलिखित है-
1. हुमायूँ का मकबरा: (ताजमहल का पूर्वगामी):- अकबर के काल की सर्वप्रथम इमारत हुमायूँ का मकबरा है। इसका निर्माण हुमायूँ की पत्नी हाजी बेगम द्वारा करवाया गया। यह दीन-पनाह के ठीक बाहर स्थित है। इसका वास्तुकार फारस का मीरन मिर्जा गियास था। इसमें मुख्य कक्ष के अतिरिक्त चार अन्य कक्ष भी हैं। जिसमें बाद में कई शहजदों  एवं शहजादियों को दफनाया गया था ,जैसे-दाराशिकोह, रफी उद्दरजात, रफी उद्दौला, बहादुर शाह जफर के दो पत्र आदि। हुमायूँ के मकबरे में एक दोहरा गुम्बद है। इसे ताजमहल का पूर्वगामी कहा जाता है क्योंकि यह पूर्णतः संगमरमर से निर्मित है।
अकबर कालीन इमारतों को दो भागों में बांटा जा सकता है। लालकिले की इमारतें एवं फतेहपुर सीकरी की इमारतें।

  1. लाल किले की इमारतें:- आगरे का लाल किला अकबर द्वारा बनवाया गया पहला किला था इसकी समानता मान सिंह द्वारा बनवाये गये ग्वालियर के किले से है। इसके अन्तर्गत प्रमुख इमारत जहाँगीरी महल है। यह स्थापत्य से प्रभावित है। इसके अन्दर की दूसरी इमारत अकबरी महल है।
  2. फतेहपुर सीकरी:- अपनी गुजरात विजय के बाद अकबर ने फतेहपुर सीकरी का निर्माण प्रारम्भ किया इसके निर्माण का श्रेय बहाउद्दीन को जाता है। फतेहपुर सीकरी की अधिकांश इमारते लाल बलुआ पत्थर से बनी हैं परन्तु कुछ इमारतों में संगमरमर का भी प्रयोग हुआ है। आइने अकबरी में अबुल-फजल ने लिखा है कि ’’सम्राट अपनी कल्पना में जिस वास्तु-कला की संकल्पना करता है उसको वह इमारत निर्माण में असली रूप प्रदान करता है’’। फतेहपुर सीकरी की प्रमुख इमारतें निम्नलिखित हैं-
  • जोधाबाई का महल:-यह फतेहपुर सीकरी की सबसे बड़ी इमारत है जो हिन्दू स्थापत्य से प्रभावित है।
  • पंचमहल या हवा महल:– यह बौद्ध विहारों से प्रभावित है।
  • मरियम महल:- इसमें भित्ति चित्र प्राप्त हुए हैं।
  • जामा मस्जिद:– यह फतेहपुर सीकरी की सबसे सुन्दर इमारत है। इसमें संगमरमर का भी प्रयोग हुआ है। प्रसिद्ध कलाविद फंग्र्यूसन ने इसे पत्थर में रुमानी कथा कहा है। ;त्वउंदमम पद जीम ैजवदमद्ध अकबर ने दीन-ए-इलाही की घोषणा यहीं से की थी।

बुलन्द दरवाजा:- जामा मस्जिद के दक्षिण में बुलन्द दरवाजा स्थित है। इसका निर्माण गुजरात विजय के उपलक्ष्य में किया गया इसकी ऊंचाई दक्षिण विजय के बाद बढ़ा दी गई। इस प्रकार यह गुजरात एवं दक्षिण विजय का प्रतीक है। इसे फतेहपुर सीकरी का गौरव कहा जाता है। जमीन तल से यह 176 फीट ऊंचा है।
शेख सलीम चिश्ती का मकबरा:- जामा मस्जिद के प्रांगड़ में स्थित है जहाँगीर ने इसे बाद में पूर्णतः संगमरमर से निर्मित कर दिया।
इस्लाम शाह की कब्र
दीवाने खास:-यही अकबर का इबादत खाना है। जहाँ प्रत्येक गुरुवार को चर्चा होती थी।

अकबर द्वारा निर्मित किले

  1. आगरा का किला
  2. लाहौर का किला
  3. इलाहाबाद का किला:-सर्वाधिक बड़ा
  4. अजमेर का किला
  5. अटक का किला

अकबर का मकबरा

यह सिकन्दरिया में स्थित है यह तीन मंजिला है इसकी प्रमुख विशेषता गुम्बद का अभाव है। यह बौद्ध विहारों से प्रभावित है। इस मकबरे का निर्माण कार्य अकबर के समय में ही प्रारम्भ हुआ परन्तु यह पूर्ण जहाँगीर के समय में हुआ।

जहाँगीर कालीन वास्तुकला

जहाँगीर के काल की प्रमुख इमारत एतमादुद्दौला का मकबरा है।
एतमादुद्दौला का मकबरा:- इसका निर्माण नूरजहाँ ने करवाया यह पूर्णतः संगमरमर से निर्मित पहली इमारत है। इस इमारत में पहली बार पीत्र दुरा ;च्ममजतंकनतंद्ध का प्रयोग भी दिखाई पड़ता है। पीत्रदुरा में सजावट के लिये जड़ाऊ रंगीन पत्थर का प्रयोग किया जाता था। इसका निर्माण आगरा में हुआ है।
शहादरा में जहाँगीर का मकबरा:- शहादरा लाहौर में स्थित है जहाँगीर के इस मकबरे का निर्माण नूरजहाँ ने करवाया।
नोट:-जहाँगीर ने कश्मीर में शालीमार बाग भी लगवाया। जहाँगीर को बागों का निर्माणकर्ता भी माना जाता है क्योंकि उसके अधिकतर निर्माण बड़े-बड़े उद्यानों में हैं। लाहौर में शालीमार बाग शाहजहाँ ने करवाया तथा आसफजाह ने निरात बाग का निर्माण करवाया।

शाहजहाँ कालीन मकबरा

शाहजहाँ का काल भारतीय इतिहास का द्वितीय स्वर्ण युग माना जाता है। वास्तु कला की दृष्टि से यह मुगल काल का स्वर्ण काल था। इस वास्तु कला की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित थी-
1. ज्यादातर इमारतें संगमरमर की बनी हैं यह संगमरमर नागौर में स्थित मकराना से लाया गया। यह सबसे अच्छे किस्म का संगमरमर माना जाता है।
2. इमारतों में चार-चार गुम्बद और सुन्दर मेहराबों का समन्वय हुआ है।
3. पीत दुरा का प्रयोग दिखाई पड़ता है।
4. अधिकतर भवनें कृत्रिम नहरों और फब्बारों युक्त उद्यानों के मध्य में निर्मित की गई। इसके कारण शाहजहाँ को नहरों के निर्माण कर्ता के रूप में भी जाना जाता है।
शाहजहाँ की इमारतें मुख्यता आगरा और दिल्ली दोनों जगह प्राप्त होती है।

आगरा की इमारतें

1. दीवानें आम:- 1627 ई0 में आगरा के किले में संगमरमर से बनाई गयी शाहजहाँ की पहली इमारत।
2. दीवाने खास
3. मोती मस्जिद:- इसका निर्माण 1654 ई0 में हुआ। यह विशुद्ध संगमरमर से बनायी गयी है।
4. खास महल
5. शीश महल:– शाही स्नानागार
6. नगीना मस्जिद
7. मुस्मात बुर्ज:– यही से शाहजहाँ झरोखा दर्शन देता था।
8. मच्छी भवन
9. चमेली महल
10. अंगुरी बाग
शाहजहानाबाद:- 1638-39 ई0 में इसका निर्माण प्रारम्भ किया गया। करीब नौ वर्षों में यह पूरा हुआ। यहीं शाहजहाँ ने अपनी राजधानी स्थापित की। इसका पश्चिमी द्वार लाहौरी दरवाजा कहलाता है जबकि दक्षिण का द्वार दिल्ली दरवाजा कहलाता है।
लाल किला:- शाहजहांनाबाद के अन्दर ही शाहजहाँ ने लाल किले का निर्माण करवाया। इसके समय में इसका नाम किला-ए-मुबारक या भाग्यवान दुर्ग था। लाल किले के अन्दर ही शाहजहाँ ने रंगमहल मोती महल एवं हीरा माल का निर्माण करवाया।
जामा मस्जिद:- 1648 ई0 जामा मस्जिद का निर्माण करवाया गया। इसमें कुल तीन गुम्बद है यह भारत की विशालतम मस्जिद है।
ताजमहल:- यह शाहजहाँ की सभी इमारतों में सबसे सुन्दर इमारत है। इसका निर्माण 1631 ई0 में प्रारम्भ हुआ तथा यह करीब 22 वर्षों में 1653 में पूरा हुआ। इसका निर्माण बादशाह ने अपनी प्रिय बेगम मुमताज महल की यादव में करवया था।
ताजमहल के निर्माण का मुख्य कलाकार उस्ताद-अहमद-लाहौरी था। इसे शाहजहाँ ने नादिर-उल-अस्र की उपाधि दी एक अन्य मत के अनुसार इसका निर्माण फारस के कलाकार उस्ताद ईसा ने किया। एक अन्य मत के अनुसार इसका निर्माण कर्ता इटली का गैरोनिमो बैरानिओ था। कुछ लोग आस्टिन को इसका निर्माण कर्ता मानते हैं।
ताजमहल के गुम्बद के निर्माण कर्ता इस्माइल खाँ रुमी थे। इसके अरबी लेखों के खुदाई कर्ता इमानत खाँ थे। ताजमहल के बाग का प्रारूप रायमल कश्मीरी ने दिया था।
दीवानेश्वास:- दिल्ली के लाल किले में स्थित इस दीवाने खास में ही शाहजहाँ ने प्रसिद्ध पंक्तियां उत्कीर्ण करवायी ’’यदि पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है यहीं हैं, यहीं है’’ यह पंक्तियाँ फिरदौसी ने अपनी पुस्तक शाहनामा में कश्मीर के लिए कही थी।

औरंगजेब

औरंगजेब की रुचि वास्तुकला में नही थी। परन्तु इसके समय में भी कुछ इमारतें बनायी गयीं।
1 लाल किले की मोती मस्जिद:- औरंगजेब ने दिल्ली के लाल किले में 1662 ई0 में मोती मस्जिद का निर्माण करवाया।
2.  बादशाही मस्जिद:– 1674 ई0 में औरंगजेब ने लाहौर की बादशाही मस्जिद का निर्माण करवाया।
3.  रबिया उद्दरौनी का मकबरा:- औरंगाबाद में इस मकबरे का निर्माण औरंगजेब ने अपनी बेगम की याद में बनवाया इसे बीबी का मकबरा भी कहा जाता है। इसे द्वितीय ताजमहल अथवा ताज महल की फूहड़-नकल कहते हैं।
औरंगजेब ने बनारस और मथुरा की मस्जिदों का निर्माण करवाया।

मुगल काल में संगीत

आइने अकबरी में अबुल फजल ने 36 संगीत करों के नाम गिनाये हैं। इसमें तानसेन बाबा हरिदास रामदास, सुनमियां, मियां चाँद, विचित्र खाँ, बाज बहादुर, अब्दुल रहीम, खान खाना आदि के नाम प्रमुख हैं।
तानसेन:- यह रीवा के राजा रामचन्द्र के दरबार में थे। वहीं से अकबर ने इन्हें अपने दरबार में आमन्त्रित किया। इनके बचपन का नाम रामतनु पाण्डे था। इन्हें ’’कष्ठा भरण वाणी विलास’’ की उपाधि दी गई। इन्होंने रुद्रवीणा का आविष्कार किया। इनके गुरु का नाम स्वामी हरिदास या मानसिंह तोमल था। अकबर हरिदास का गाना सुनने के लिए उनकी कुटिया तक गया था। तानसेन का जन्म ग्वालियर में हुआ।
अकबर के काल में ही संगीत की प्रसिद्ध पुस्तक रागमाला की रचना 1570 ई0 में क्षेमकरण ने की। तानसेन का मकबरा ग्वालियर में है।

जहाँगीर कालीन

जहाँगीर के समय में भी अनेक संगीतकार थे। इसमें तानसेन के पुत्र विलास खाँ, छतर खाँ, खुर्रमदाद, मक्खू, और हम्जान प्रमुख थे। मौकी नामक गजल गायक के आनन्द खाँ की उपाधि दी गई।

शाहजहाँ कालीन

शाहजहाँ के समय में 30 संगीतकार थे। इससे जगन्नाथ सूरसेन, लाल खाँ, सुख सेन और तुरग खाँ अत्यन्त प्रसिद्ध थे। शाहजहाँ ने लाल खाँ को गुण समन्दर की उपाधि दी थी।

औरंगजेब

यद्यपि औरंगजेब संगीत पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। परन्तु संगीत पर सर्वाधिक फारसी में पुस्तकें इसी के काल में लिखी गई। फकी रुल्लाह ने संगीत की एक पुरानी पुस्तक मान कुतूहल की रागदर्पण के नाम से फारसी में अनुवाद किया।

मुगल कालीन प्रशासन

आइने अकबरी में अबुल-फजल ने लिखा है कि पादशाह खुदा का नूर और सूर्य की किरणा होता है। अकबर के लिए ’’-फर्र-ए-इज्जी’’ शब्द किया गया है। आइने अकबरी में अबुल-फजल ने सम्राट के कर्मचारियों की तुलना चार तत्वों से की है-आग, हवा, पानी तथा भूमि। आग की तुलना अमीर एवं उमरा वर्ग से की गई है। जो शत्रुओं का अग्नि की भाँति भक्षण करते हैं। राजस्व अधिकारियों की तुलना हवा से की गई है जो कभी गर्म और कभी ठण्डी हवा देते हैं। विद्वान पुरुषों की तुलना जल से की गयी है जो अपने ज्ञान जल में गुस्से को डूबो देते हैं। बादशाह के व्यक्तिगत सेवकों किसानों मजदूरों आदि की तुलना भूमि से की गई है।
अकबर के समय वकील का पद महत्वपूर्ण था। इस पद पर बैरम खाँ आसीन था। इस पद को महत्वपहीन बनाने के लिए अकबर ने 1586 ई0 में एक नये पद दीवाने-वजीरात-ए-कुल की स्थापना की। शाहजहाँ ने वकील के पद को ही समाप्त कर दिया। अकबर ने वकील के कर्तव्यों को चार अधिकारियों दीवान, मीरबक्शी, सद्र-उस-सुदूरय और मीर सामा में विभाजित कर दिया।
दीवाने-वजीर:- मुगल काल में यह पद सर्वाधिक महत्वपूर्ण था। इसका प्रमुख दीवाने-असरफ कहलाता था। प्रमुख वजीरों का वर्णन निम्नलिखित है।
अकबर:- मुजफ्फर खाँ, टोडरमल, ख्वाजाशाह मंसूर, रहीम खान खाना, मीरजा अजीज कोका।
जहाँगीरः– गियासवेग (एतमादुददौला)
शाहजहाँः– अफजल खाँ, इस्लाम खाँ, सादुल्ला खाँ,
औरंगजेब के समय:– असद खाँ, (31 वर्षों तक वजीर रहा)

केन्द्रीय अधिकारी

आइने अकबरी में पदाधिकारयों को 33 वर्गों में बाँटा गया है-
1. दीवाने-वजीर:- यह प्रधान मंत्री था। इसके पाँच मुख्य अधिकारी सहायक होते थे।

  • दीवाने-खालसा:-खालसा भूमि का मालिक।
  • दीवाने-तन:– वेतन एवं जागीरों की देखभाल करने वाला।
  • मुस्तैफी:- आम और व्यय का निरीक्षक।
  • मुसरिक:- महालेखाकार।
  • वाकिया-ए-नवीस:- समाचार रिपोर्टर।

2. मीर-वक्शी:– सेना का प्रमुख।
3. सद्र-उस-सद्र:– धार्मिक मामलों का प्रमुख।
4. काजी:- न्याय का अधिकारी/काजी की सहायता मुफ्ती करते थे जो कानूनों की व्याख्या करते थे।
5. खाने सामा:- भोजनालय विभाग।
6. मीर-ए-आतिस:– तोपखाना विभाग।
7. दरोगा-ए-डाक चैकी:– इसके अधीन राज्य के गुप्तचर और संवाद वाहक होते थे।
8. मुहत्सिब:- औरंगजेब के समय नियुक्त लोगों के आचरण पर नजर रखता था।
9. मीर-ए-तुजुक:– धर्मानुष्ठान अधिकारी।
10. मीर-बहर:- बन्दर गाहो, नदी के मुहानों तथा पुलों के निकट कर वसूलने वाला अधिकारी।
11. मीर-अदल:– ये राजा के फैसलों का मजमून बनाते तथा उसे पढ़कर सुनाते थे।
12. मीर-बर्र:- वनों का अधीक्षक।
13. मीर-तोजक:– समारोहों का प्रमुख अधिकारी।
14. मीर अर्ज:- बादशाह के पास भेजी गई अर्जियों का अधिकारी।
15. नाजीरे बयूतात:- शाही कारखानों का प्रमुख अधिकारी।

केन्द्रीय विभाजन
सूबा-सरकार-परगना-दस्तूर-ग्राम

सूबा:-सूबेदार (प्रमुख)
मुगल काल में प्रान्तों को सूबा कहा गया। इसका प्रमुख अधिकारी सूबेदार होता था। सूबे के अन्य अधिकारियों में दीवान, वक्शी, वाकिया-ए-नवीस, कोतवाल, काजी, आदि थे। अकबर ने सर्वप्रथम 1580 में अपने राज्य को 12 सूबों में बाँटा, दक्षिण विजय के बाद इसमें तीन और सूबे सम्मिलित हो गये तब सूबों की संख्या 15 हो गई इनमें-इलाहाबाद, आगरा, अवध, अजमेर, गुजरात, विहार, बंगाल, दिल्ली, काबुल, लाहौर, मुल्तान, मालवा-बरार, खानदेश, अहमदनगर।
अकबर ने कश्मीर व कान्धार विजय के बाद उसे अलग सूबा न बनाकर, बल्कि काबुल सूबे के अन्तर्गत रखा। इसी तरह सिन्ध की विजय के बाद उसे मुल्तान सूबे के अन्तर्गत रखा गया। इसी तरह उड़ीसा विजय के बाद इसे अलग सूबा न बनाकर इसे बंगाल सूबे में रखा गया।
जहाँगीर:- जहाँगीर के समय में सूबों की संख्या 17 थी जहाँगीर ने कांगडा विजय की परन्तु उसे अलग सूबा न बनाकर लाहौर सूबे के अन्तर्गत ही रखा गया। जहाँगीर ने दो नये सूबे सिन्ध और उड़ीसा बनाये। इस तरह उसके समय में सूबों की संख्या 17 हो गई।
शाहजहाँ:- शाहजहाँ के समय में एक बार तो सूबों की सं0 22 हो गयी परन्तु उसके अन्तिम काल तक सूबों की सं0 20 थी।
औरंगजेब:- इसके समय में सूबों की संख्या 21 थी। कांधार इसके समय तक मुगल राज्य से बाहर हो चुका था।
सूबे के प्रमुख को सूबेदार के अलावा सिपहसालार या नाजिल भी कहा जाता था।
सरकार:- जिलों को सरकार कहा गया है इसके प्रमुख अधिकारी निम्नलिखित थे।
1. फौजदार 
2. आमिल:- जिले का प्रमुख भू-राजस्व अधिकारी यह खालसा भूमि से भी लगान वसूलता था।
3. कोतवाल:- यह नगर का प्रमुख अधिकारी था। कानून व्यवसयी बनाये रखना इसका मुख्य कार्य था।
वितिक्चिी:- भूमि और लगान सम्बन्धी कागजातों को तैयार करता था।

परगना या महल

1. शिकदार:- परगने का प्रमुख
2. आमिल या मुंशिफ:- राजस्व अधिकारी।
3. कानूनगो:- आमिल का सहायक।
4. फोतदार:- परगने का खजांची।
5. कारकून:- क्लर्क
ग्राम:– ग्राम को मावदा या डीह भी कहा जाता था। मावदा के अन्दर छोटी-छोटी बस्तियों को नागला कहा जाता था। गाँव का प्रमुख अधिकारी खूत मुकद्दम अथवा चैधरी होता था।

सैन्य प्रशासन

मुगल काल में पैदल घुड़सवार सेना एवं हस्ति सेना थी। मुगल काल में नौसेना का उल्लेख नहीं मिलता।
पैदल सेना:- इसमें दो प्रकार के सैनिक प्रमुख थे।
1. अहशाम:– युद्ध करने वाले सैनिक थे।
2. सेहबंदी:- ये माल-गुजारी वसूल करने में सहायता करते थे।
एक अन्य प्रकार के सैनिक दाखिली थे-
दाखिली सैनिक:- इनकी भर्ती बादशाह करता था परन्तु ये मनसबदारों की सेवा में भेज दिये जाते थे।
हस्ति सेना:- अकबर को हाथियों का बड़ा शौक था।
तोपखाना:- तोपें मुख्यतः दो प्रकार की थी। जिंसी-ये भारी तोपें होती थी, दस्ती-ये हल्की तोपें होती थी।
घुड़सवार सेना:- इनके मुख्यतः दो प्रकार थे-
1. सिलेदार
2. बरगीर
सिलेदार को घोड़े और अस्त्र-शस्त्र का प्रबन्ध स्वयं करना पड़ता था जबकि बरगीर को यह सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जाता था।
अहदी सैनिक:- ये राजा के निजी सैनिक थे। इन्हें भद्र सैनिक भी कहा जाता था। ये राजा के साथ रहते थे।

मनसबदारी व्यवस्था

मनसबदारी व्यवस्था की शुरुआत घुड़सवार सेना के लिए की। यह व्यवस्था मध्य-एशिया की मंगोल पद्धति के दशमलव प्रणाली पर आधारित थी। मनसब का अर्थ है पद। यह दो भागों जात एवं सवार में विभाजित था। जात का अर्थ है व्यक्तिगत पद एवं सवार से तात्पर्य घुड़सवारों की संख्या है। मनसब सैनिक अथवा असैनिक। किसी को भी दिये जा सकते थे। आइने-अकबरी में 66 प्रकार के मनसबों का उल्लेख है। परन्तु व्यवहार में 33 प्रकार के मनसबें ही प्रचलित थे। मनसब की शुरुआत अकबर ने 1577 ई0 में की पहले इसमें सवार का पद शामिल नहीं था 1594-9र्5 0 से इसमें सवार का पद भी जुड़ गया। यह पद स्थानान्तरितवीय था आनुवंशिक नहीं। अकबर के समय में प्रारम्भ में 10 से लेकर 10,000 और बाद 12 हजार तक मनसब दिये गये। इसकी मुख्यतः तीन श्रेणियां थी।
10-500 तक के बीच मनसबदार को-मनसबदार
500-2500 तक के बीच मनसबदार को-अमीर
2500-7000 तक के बीच मनसबदार को-अमीर-ए- आजम, अमीर-ए-उम्दाया उमरा।
सैनिक अधिकारियों को कहा जाता था सबसे प्रतिष्ठा का पद मिर्जा अजीज कोका को 7000 का मनसब दिया गया जबकि जहाँगीर को पहले 10,000 और फिर 12,000 का मनसब दिया गया।

जहाँगीर

जहाँगीर के समय में मनसबदारी व्यवस्था में कुछ परिवर्तन किये गये। उसने दो नये शब्दों दुहअस्पा एवं शिहअस्पा का प्रयोग किया। दुह अस्पा के अन्तर्गत दो घुड़सवार एवं शिह अस्पा के अनतर्गत तीन अतिरिक्त घोड़े एक अतिरिक्त घोड़ा रखने होते थे। इस प्रकार जहाँगीर ने मनसबदारों के बिना पद बढ़ाये ही उनके घुड़सवार की संख्या में वृद्धि कर दी।

शाहजहाँ

शाहजहाँ के समय में मनसबदारी व्यवस्था सबसे अच्छा कार्य कर रही थी। उसने मनसबदारों को मासिक वेतन देने की प्रथा प्रारम्भ की उसके समय में दो नई जागीरों का उल्लेख मिलता है।
1. शिशमाहा:- जहाँ से राजस्व वसूली 50 प्रतिशत हो।
2. शीहमाहा:- जहाँ से राजस्व वसूली 25 प्रतिशत हो।
शाहजहाँ के समय में सबसे बड़ा मनसब दाराशिकोह को 60,000 का मनसब दिया गया। पूरे मुगल काल का यह सबसे बड़ा मनसब था।

औरंगजेब

इसके समय में मनसबदारी व्यवस्था में खाँमियाँ आने लगी। क्योंकि औरंगजेब के समय में सर्वाधिक राज्य का विस्तार हुआ। इसलिए उसने खालसा भूमि को भी मनसबों में बाँट दिया। जहाँ अकबर के समय में मनसबदारों की संख्या 1803 थी वहीं औरंगजेब के समय में मनसबदारों की संख्या 1803 थी वहीं औरंगजेब के समय में यह बढ़कर 14,4449 हो गई। इससे जमा-दामी (कुल राजस्व) (अर्थात जागीर से होने वाली आय) एवं जमा हासिल (वास्तविक आय) के बीच अन्तर बढ़ता ही गया जिसके कारण मनसबदारी व्यवस्था के आधार-भूत द्वोष सामने आने लगे। डा0 सतीश चन्द्र ने मुगल मनसबदारी व्यवस्था में आये दोषों को ही मुगल साम्राज्य के पतन का सबसे प्रमुख कारण माना है।
मशरुत:– इस व्यवस्था के द्वारा औरंगजेब ने बिना मनसब बढ़ाये ही सवार में वृद्धि करने का तरीका ढूंढ निकाला।

2 thoughts on “मुगलकालीन वास्तुकला”

    • govind जी आपने सुधार के लिए सहयोग दिया इसके लिए धन्यवाद |आपका सुझाव महत्वपूर्ण है |

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